कृत्रिम जीवन के खतरे

देविंदर शर्मा:
http://in.jagran.yahoo.com/news/opinion/general/6_3_6478163.html

आपका-हमारा हमेशा से विश्वास रहा है कि ईश्वर ने ही जीवन की उत्पत्ति की है। जीवन और मरण परमात्मा के हाथ में है। जो भी घटित होता है वही हमारी नियति है। आप जिस भी पंथ से हैं या जिस भी पंथ में आपकी आस्था है, वह आपको सिखाता है कि कि आपको ईश्वर की दिव्य शक्ति में विश्वास रखना चाहिए। ईश्वर में आस्था ने आपको जीवन और जीने का उद्देश्य दिया है। बताया जाता है कि भगवान के अनेक रूप हैं। भगवान सभी जीवों में वास करते हैं। आप उस तक पहुंचने के लिए अध्यात्म की शरण में जाते हैं। कम से कम इस विश्वास के तहत कि यही शास्वत सत्य है।

यह सब अब धीरे-धीरे बदलने जा रहा है। अमेरिकी वैज्ञानिक और उद्यमी क्रेग वेंटर ने घोषणा की है कि उनकी टीम ने विश्व का पहला 'सिंथेटिक सेल' अर्थात जीवन तैयार कर लिया है। उन्होंने स्वीकार किया कि इस खोज ने जीवन की परिभाषा और उसकी अवधारणा को बदल दिया है। यद्यपि वह एक नई प्रजाति या चलता-फिरता जीव बनाने से कोसों दूर हैं, फिर भी सत्य यह है कि उन्होंने कृत्रिम जेनेटिक कोड जिसे डीएनए के नाम से जाना जाता है, बना लिया है, जो किसी भी प्रकार के जीवन का मूलाधार है।

दूसरे शब्दों में, ईश्वर के सामने अब प्रतिद्वंद्वी खड़ा हो गया है। यह पहली बार हुआ कि किसी ने ईश्वर के साथ मुकाबला करने का साहस किया है। आप इस बात पर कंधे उचका सकते हैं। आप इस पर भरोसा करने से इनकार कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति किसी के जीवन और मृत्यु को निर्धारित करे, किंतु यही समय है जब आपको अपना पंथिक आवरण उतारकर इसे तर्क की कसौटी पर कसना चाहिए। यही समय है जब आपको इसमें मानवता के कल्याण के नए अवसरों को देखना चाहिए, जैसा कि वैज्ञानिक ने दावा किया है। साथ ही यह भी स्वीकारना चाहिए कि मानवता के भविष्य के लिए इसके कितने गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं।

क्रेग वेंटर का कहना है कि उन्होंने पहली संश्लेषित कोशिका की रचना की है, जिस पर संश्लेषित जीनोम नियंत्रण रखता है। यह मानव द्वारा निर्मित पहली संश्लेषित सेल है। वह इसे संश्लेषित इसलिए कहते हैं कि सेल को विशुद्ध रूप से संश्लेषित गुणसूत्र द्वारा निर्मित किया गया है। इसे रासायनिक संश्लेषण की चार बोतलों से निर्मित किया गया है और इस काम में कंप्यूटर की सहायता भी ली गई है। सरल वैज्ञानिक शब्दावली में, क्रेग वेंटर जो कहना चाह रहे हैं वह यह कि उन्होंने कृत्रिम सेल बना ली है। अब हमें नहीं भूलना चाहिए कि ग्रह की रचना के बाद जीवन पनपने में लाखों साल का समय लग गया था, जबकि क्रेग और उनकी टीम ने सेल का निर्माण महज 15 साल में ही कर दिखाया। इस दिशा में पहला कदम तो उठाया जा चुका है, अब आप इंतजार कीजिए और देखिए कि वैक्टीरिया के पहले कृत्रिम स्वरूप की रचना कब तक हो पाती है।

क्रेग वेंटर का मानना है कि यह उस युग का सूर्योदय है जब नया जीवन मानवता के लिए बेहद हितकारी होगा। इससे ऐसे वैक्टीरिया का निर्माण किया जा सकता है जो आपकी कार के लिए ईंधन के रूप में प्रयुक्त होगा, वातावरण में से कार्बन डाईआक्साइड सोख कर वैश्विक ताप को कम करने में अहम भूमिका निभाएगा और तो और इन वैक्टीरिया से रोगों को दूर करने वाले टीके भी बनाए जा सकेंगे। कुछ वैज्ञानिकों का तो यह भी मानना है कि इस खोज से मानव शरीर के खराब अंगों के प्रत्यारोपण के लिए सही अंगों का निर्माण निजी लैबों में करना संभव हो जाएगा। इसके अलावा जैव संवर्धन से डिजाइनर फसलों, भोजन और बच्चों की नई पीढ़ी भी अस्तित्व में आ सकती है।

इस प्रकार वैज्ञानिक हलके उत्साह से लबरेज नजर आ रहे हैं। निवेश के रूप में निजी कंपनियों द्वारा अपनी थैली खोल देने के बाद यह समझ लेना चाहिए कि नया भगवान कृपालु नहीं होगा। नए भगवान के व्यावसायिक हित होंगे। निजी कंपनियां करीब 30 फीसदी मानव अंगों को पहले ही पेटेंट करा चुकी हैं। ऐसे में आपको यह अनुमान लगाने के लिए किसी बौद्ध वृक्ष के नीचे जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी कि भविष्य में इसके गर्भ में कितने भयावह खतरे पल रहे हैं। मैं अक्सर कहता हूं कि नरक का मार्ग शुभेच्छाओं से ही प्रशस्त होता है। यह नई खोज हमें नरक की ओर ले जा रही है, जिसके रास्ते में कोई स्पीड ब्रेकर भी नहीं है।

वह दिन अब दूर नहीं रह गया है जब जीवन का समानांतर स्वरूप सामने होगा। हमारे बीच ही एक और जिंदा नस्ल पैदा होने जा रही है। जब भी इंसान ने भगवान से जैविक इंजीनियरिंग का अंत‌र्ग्रहण किया है, जैसा कि दो महान भारतीय धर्मग्रंथों-रामायण और महाभारत में वर्णित है, उससे केवल आसुरी शक्तियां ही पैदा हुई हैं। रावण, जिसे बुद्धिमानों का बुद्धिमान बताया गया है, ने भगवान से जेनेटिक इंजीनियरिंग सीखी थी। इसके बाद वह राक्षस बन गया। ऐसा ही महाभारत में कौरवों का उदाहरण है। कौरव भाई क्लोन थे और वे भी नकारात्मक ताकत बन गए। वह दिन भी बहुत दूर नहीं है जब जैविक युद्ध का नया घातक स्वरूप देखने को मिलेगा। आने वाले समय में मानव, पशु और वैक्टीरिया के क्लोन पूरी पृथ्वी पर विचरण करते नजर आएंगे। इसमें कोई शक नहीं कि अब रक्षा उद्योग घातक जैविक हथियारों पर ध्यान केंद्रित करेगा। आनुवांशिकीय इंजीनियरिंग पूरी तरह निजी नियंत्रण में चली जाएगी। इसके गंभीर परिणाम होंगे। आप इस नई प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं कर सकते, जो एक नए प्रकार के जीवन को रचने का वादा कर रही है।

मैं धार्मिक व्यक्ति नहीं हूं, किंतु साथ ही मैं ऐसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी का भी समर्थक नहीं हूं जो समाज के नियंत्रण से बाहर हो। हम विज्ञान को कारपोरेट जगत की दासी के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते। किसी कंपनी के बोर्ड रूम में बैठे कुछ लोगों को यह तय करने की छूट नहीं दी जा सकती है कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा? यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है और ग्लोबल वार्रि्मग के रूप में विश्व इसका दुष्परिणाम भुगत रहा है। सिंथेटिक जीवन बहुत गंभीर खतरा है और कोई ग्रीनहाउस गैस समझौता उसके दुष्परिणामों को समाप्त नहीं कर सकता। एक बार जब जिन्न बाहर आ गया तो उसे बोतल में बंद करना संभव नहीं है।

पहले ही आनुवांशिकीय संवर्धित फसलों से पूरे विश्व में बवाल मचा हुआ है। जैवप्रौद्योगिकी उद्योग द्वारा इनके गुणगान के बावजूद मानव और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाला इनका घातक प्रभाव उभर कर सामने आने लगा है। औद्योगिक हितों के लिए नियामक निकाय भी तथ्यों और शोधों को तोड़मरोड़ कर पेश कर रहे हैं। लोग वैज्ञानिक इकाइयों की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। समाज इस खोज को हलके में नहीं ले सकता। हमें इसे अन्य आनुवांशिकीय इंजीनियरिंग का प्लेटफार्म नहीं बनने देना चाहिए। इसके बहुत गंभीर और भयावह निहितार्थ हैं। लोगों को चाहिए कि वे सरकार को जगाएं और खतरे से निपटने के उपाय खोजें।

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